सुरक्षित Future निर्माण के लिए: Goal-based Investing में 7 Important कदम

लक्ष्य आधारित निवेश(Goal-based Investing): आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में निवेश के बारे में कोई नहीं सोचता, जबकि निवेश एक ऐसी चीज है जिसे अगर सही तरीके से किया जाए तो यह हमारे जीवन की बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान कर सकता है।

अगर बात करें लक्ष्य आधारित निवेश(goal-based investing) की तो इसके लिए हमें कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना होगा। हमें समझना होगा कि हमारे जीवन में क्या-क्या जरूरतें हैं। रिटायरमेंट के हिसाब से निवेश कई रूपों में करना पड़ता है। निवेश शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म हो सकता है।

हम निवेश को हाई रिस्क कैटेगरी में भी रख सकते हैं और लो रिस्क कैटेगरी में भी। और यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि हमें भविष्य में कितने फंड की जरूरत है और कब। तो आइए देखते हैं वो कौन से 7 बिंदु हैं जिन्हें अगर हम याद रखें और उनके तहत काम करें तो हम अपने भविष्य में जरूरी फंड को पूरा कर पाएंगे।

Goal-based Investing को समझें

लक्ष्य आधारित निवेश(Goal-based Investing) करने से पहले हमें यह तय करना होगा कि हमें अपने जीवन में कितने पैसों की जरूरत है और उसी के अनुसार हम लक्ष्य आधारित निवेश कर सकते हैं।

हमें यह तय करना होगा कि हमारी अल्पकालिक जरूरत क्या है, मध्यम अवधि की जरूरत क्या है और दीर्घकालिक जरूरत क्या है। अगर हम अल्पकालिक जरूरत की बात करें तो यात्रा करना, कार खरीदना, कंप्यूटर खरीदना या दो पहिया वाहन खरीदना आता है। इसके लिए थोड़े फंड की जरूरत होती है।

अगर हम मध्यम प्रकार की फंड जरूरत की बात करें तो इसमें बच्चों की पढ़ाई, खासकर किसी बड़े कॉलेज में पढ़ाई या उनकी शादी के खर्चे शामिल हैं। दीर्घकालिक जरूरत या भारी फंड की जरूरत या किसी ऐसे फंड की जरूरत हो  जिसमें बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत हो, ऐसी श्रेणी में रिटायरमेंट के बाद के खर्च या घर बनाने के खर्चे शामिल हैं। इन दोनों ही स्थितियों में बड़े फंड की जरूरत होती है। अगर हम इन तीनों खर्चों या फंड की जरूरत को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य आधारित निवेश(goal-based investing) करें तो हमें आने वाले दिनों में कम मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा और यही सही तरीका है।

Goal-based Investing में महारत हासिल करने के लिए मुख्य कदम:

1.अपने लक्ष्यों को पहचानें और प्राथमिकता दें(Identify and prioritize your goals):

अगर हम मान लें कि आपका एक ही बच्चा है, इसका मतलब है कि आपको उसकी पढ़ाई के लिए, उसकी शादी के लिए और  रिटायरमेंट के लिए फंड की जरूरत होगी। अगर आपके पास पहले से घर है, इसका मतलब है कि रिटायरमेंट के बाद आपको घर की जरूरत नहीं है।

रिटायरमेंट के बाद आपको सिर्फ अपने खर्चों के लिए फंड की जरूरत होती है। इस हिसाब से आप अपने रिटायरमेंट को ध्यान में रखते हुए अपने निवेश को अलग रूप में रख सकते हैं। अब दूसरा उदाहरण देखते हैं, अगर आपके दो बच्चे हैं और आपके पास घर नहीं है, इस कंडीशन में रिटायरमेंट के बाद आपको रिटायरमेंट के खर्चों के लिए पैसों की जरूरत है, आपको अपना घर बनाने के लिए पैसों की जरूरत है और मध्यम जरूरत के तौर पर आपको दोनों बच्चों की पढ़ाई के लिए भी पैसों की जरूरत है और शॉर्ट टर्म में छोटे-मोटे खर्चे भी आते रहेंगे। इस कंडीशन में आपको फंड को अलग तरीके से आवंटित करना होगा।

2. प्रत्येक लक्ष्य को मात्रात्मक बनाएं(Make each goal quantifiable):

भारत एक गतिशील देश है जहाँ महंगाई काफी अधिक है। अगर प्रॉपर्टी की कीमतों की बात करें तो वे लगातार बढ़ रही हैं और आपको यह भी अंदाजा लगाना होगा कि आने वाले दिनों में आपको घर बनाने के लिए कितने फंड की जरूरत पड़ेगी। यानी जो प्रॉपर्टी आज 40 लाख रुपये में बन रही है, शायद आज से 20 साल बाद इस साइज की प्रॉपर्टी बनाने के लिए 4 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी। यानी हमें भविष्य को देखते हुए अपने फंड के रिटायरमेंट का पहले से ही निर्धारण करना होगा। अगर हम अपने फंड के रिटायरमेंट का सही पता नहीं लगा पाए तो हमारा निवेश सही नहीं होगा और लक्ष्य आधारित निवेश(goal-based investing) का फॉर्मूला फेल हो जाएगा।

3. प्रत्येक लक्ष्य के लिए संपत्ति आवंटित करें(Allocate assets for each goal):

हर लक्ष्य के लिए आपको अपने फण्ड को अलग-अलग कैटेगरी में सेट करना होगा, जैसे लॉन्ग टर्म की जरूरत या जिसमें बहुत ज्यादा फंड की जरूरत हो, उस कैटेगरी में आप ज्यादा जोखिम ले सकते हैं, जैसे आप इस फंड को म्यूच्यूअल फंड या डायरेक्ट शेयर मार्केट में रख सकते हैं, जिससे फंड को काफी ग्रोथ मिले, जैसा कि हम जानते हैं कि म्यूच्यूअल फंड या शेयर मार्केट काफी अस्थिर होता है, हमें समय-समय पर इन फंड्स की लगातार समीक्षा करनी होगी और ऐसेट ऐलकैशन(asset allocation) में भी बदलाव करना पड़ सकता है। शॉर्ट टर्म फंड के लिए हम ज्यादा जोखिम नहीं ले सकते हैं। इन चीजों के लिए सबसे अच्छा निवेश बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट है। मीडियम फंड की बात करें तो हम अपने फंड को ऐसी जगह रखेंगे जहां ज्यादा जोखिम न हो और फंड को बढ़ने का मौका भी मिले, जैसे हम रियल एस्टेट में निवेश कर सकते हैं, छोटा प्लॉट खरीद सकते हैं या सोना खरीद कर रख सकते हैं और जब जरूरत हो तो उसे बेच सकते हैं।

4. सही निवेश चुनें(Choose the right investment):

निवेश करने से पहले बाजार का सर्वेक्षण करना बहुत ज़रूरी है। मान लीजिए अगर आप इक्विटी में निवेश करना चाहते हैं और अपने दोस्तों की सलाह पर इक्विटी चुनते हैं, तो इस बात की बहुत ज़्यादा संभावना है कि आपका निवेश ग़लत हो जाएगा  क्योंकि आपने उसका बिल्कुल भी अध्ययन नहीं किया है।

यह गलत तरीका होगा। किसी भी शेयर में निवेश करने से पहले उसका ठीक से अध्ययन करें। शेयर की बैलेंस शीट देखें। कंपनी ने कितना लोन लिया है और कंपनी किस दिशा में जा रही है। इन चीज़ों के लिए ऑनलाइन कई वेबसाइट हैं, जिन पर आप ये चीज़ें सर्च कर सकते हैं और फिर अपना फ़ैसला ले सकते हैं। अगर पैसा आपका है, तो आपको हीं अध्ययन  करना होगा।

5. नियमित समीक्षा और पुनर्संतुलन(Regular review and rebalancing):

अपने पोर्टफोलियो की नियमित रूप से जांच करते रहें। मान लीजिए आपने किसी ऐसी कंपनी में निवेश किया है जो अच्छा प्रदर्शन कर रही थी, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उस कंपनी में कुछ गलत न  हो। इसीलिए अगर कंपनी में कोई समस्या आती है तो शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है। ऐसी स्थिति में आपको उस कंपनी से बाहर निकलकर नई कंपनी चुन लेनी चाहिए। अगर आपके फंड रेक्विरमेंट में कोई बदलाव होता है तो आप उस फंड को उसी हिसाब से फिर से निवेश कर सकते हैं।

6. धैर्य बनाए रखें(Be patient):

लंबी अवधि के निवेश में धैर्य बनाए रखने की जरूरत होती है। बाजार में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसलिए बाजार से जल्दी निकल जाना और फिर वापस आ जाना लंबी अवधि के निवेश में सही तरीका नहीं है। अगर कोई बड़ी घटना घट जाए तो आप बाजार से निकल सकते हैं, लेकिन सही मौका मिलते ही फिर से बाजार में आ जाना सही फैसला हो सकता है। छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव को नजरअंदाज करना और उनसे सीख लेकर निवेश को सही दिशा देना लक्ष्य आधारित निवेश(goal-based investing) में एक महत्वपूर्ण कदम है।

7. यदि आवश्यक हो तो पेशेवर सलाह लें(Seek professional advice if necessary):

अगर आप लक्ष्य आधारित निवेश नहीं कर पा रहे हैं तो आप पेशेवर सलाह ले सकते हैं। इसके लिए बाजार में कई कंपनियां काम कर रही हैं और वे मामूली फीस के बदले में आपको सही मार्गदर्शन दे सकती हैं। इस लिहाज से म्यूचुअल फंड निवेश का एक अच्छा जरिया है जिसमें आप हाई रिस्क और लो रिस्क को मिलाकर कई म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं। SIP  के रूप में म्यूचुअल फंड निवेश लंबी अवधि के Retirement plaining के लिए एक अच्छा जरिया हो सकता है।

यह आपको तय करना है कि आप पैसों के मामले में सलाह लेना चाहते हैं या मार्केट रिसर्च  के बाद खुद से निवेश करना चाहते हैं। अगर आपके पास ज्यादा समय नहीं है और आप नियमित रूप से अपनी पोजीशन चेक नहीं कर पा रहे हैं तो बेहतर है कि आप एक पेशेवर सलाहकार रखें और उसकी सलाह के मुताबिक फंड को अलग-अलग कैटेगरी में आवंटित करें।

    सारांश : लक्ष्य आधारित निवेश(Goal-based Investing) से आप अपने भविष्य के लिए एक अच्छा फंड बना सकते हैं और एक सुनहरा जीवन जी सकते हैं, लेकिन इसके लिए गहन अध्ययन या पेशेवर सलाहकार की आवश्यकता होगी।

    लंबे समय तक बाजार में बने रहना और नियमित रूप से फंड आवंटन की जांच करना लक्ष्य आधारित निवेश(goal-based investing) करने का सही तरीका है। हमें बदलते समय के साथ बदलना होगा और बाजार के साथ तालमेल बिठाना होगा। हमें उम्मीद है कि आपको यह ब्लॉग पोस्ट पसंद आया होगा। ऐसे और ब्लॉग पोस्ट के लिए, तेज़ खबर 24×7 से जुड़े रहें।

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