EPF (कर्मचारी भविष्य निधि) को लेकर कई लोगों में काफी भ्रम की स्थिति है और उसके बाद EPF के आयकर को लेकर भी कुछ बदलाव किए गए हैं, ये सब मिलकर लोगों में और अधिक भ्रम पैदा कर रहे हैं, आज हम इस लेख के माध्यम से इन सबके बारे में जानने की कोशिश करेंगे।
अब EPF के बारे में जानने से पहले हम सैलरी स्ट्रक्चर के बारे में बात करेंगे। ज़्यादातर कंपनियों में सैलरी CTC (कॉस्ट टू कंपनी) के आधार पर दी जाती है। इसका मतलब है कि हमारी बेसिक सैलरी के अलावा कई चीज़ों के लिए कटौती की जाती है। इसका मतलब है कि जिस कंपनी में हम काम कर रहे हैं, उसे एक कर्मचारी को रखने का कुल खर्च दिया जाता है।
तो इसमें की जाने वाली कटौतियों में से कुछ प्रतिशत स्वास्थ्य बीमा के लिए काटा जा सकता है और उसके अलावा कुछ प्रतिशत कंपनी में खाने आदि उपलब्ध कराने के लिए काटा जाता है और इन सबके अलावा सबसे ज्यादा कटौती का प्रतिशत EPF (कर्मचारी भविष्य निधि) के रूप में काटा जाता है। इसके लिए काटी जाने वाली राशि हमारे कुल वेतन का 24% तक हो सकती है।
अब किसी कंपनी में ऐसा होता है कि कर्मचारी से 1800 रुपये लिए जाते हैं और कंपनी की तरफ से ईपीएफ में सिर्फ 1800 रुपये ही जमा किए जाते हैं और ऐसा क्यों होता है और कर्मचारी की सैलरी से जो पैसा EPF में जमा किया जा रहा है और कंपनी की तरफ से कर्मचारियों के ईपीएफ अकाउंट में कब पैसा जमा किया जा रहा है, ये हम आगे जानेंगे। ईपीएफ में पैसा जमा करने के नियम क्या हैं और ये कैसे काम करता है? इससे पहले हम जानेंगे कि EPF क्या है और EPF का पूरा स्ट्रक्चर क्या है?
Table of Contents
EPF क्या होता है? और इसका पूरा स्ट्रक्चर क्या है?
इसलिए अगर हम EPF की बात करें तो इसमें अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्ति, स्वास्थ्य बीमा और निवेश भी शामिल होता है।
तो जब भी कोई कर्मचारी किसी कंपनी में नौकरी ज्वाइन करता है तो कंपनी कर्मचारियों के लिए EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि निगम) कार्ड बनाती है। इसके बाद ईपीएफ कर्मचारियों के लिए UAN (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर) बनाता है। यह EPF खाते के लिए एक विशेष आईडी है।
तो जब भी UAN ID जनरेट होगी, इसके बाद अगर आप भविष्य में इस कंपनी को छोड़कर किसी दूसरी कंपनी में ज्वाइन करते हैं तो आपका UAN नंबर नई कंपनी में जुड़ जाता है और जब भी आप नई कंपनी में ज्वाइन करेंगे तो आपके इस कंपनी के ईपीएफ खाते का सारा पैसा नई कंपनी के EPF खाते में चला जाएगा। और आप UAN नंबर से इस ईपीएफ खाते में पैसे ऑनलाइन भी चेक कर सकते हैं।
किस कंपनी के लिए EPF अकाउंट खुलवाना जरूरी होता है?
जिन कंपनियों में 20 से अधिक कर्मचारी हैं, उन्हें EPF खाता खोलना अनिवार्य है तथा जिन कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या इससे कम है, वे स्वेच्छा से अपना ईपीएफ खाता पंजीकृत करा सकती हैं। हमने कंपनियों के बारे में तो बात कर ली, लेकिन यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि कर्मचारियों के लिए क्या नियम और कानून हैं।
जिन कर्मचारियों का बेसिक और डीए (महंगाई भत्ता) मिलाकर मासिक वेतन 15000 से कम है, ऐसे कर्मचारियों के लिए ईपीएफ खाता खोलना बहुत जरूरी है। और जिन कर्मचारियों का मासिक वेतन 15000 से अधिक है, उन्हें स्वैच्छिक आधार पर पंजीकरण कराना होगा।
EPF में कंपनी के योगदान और कर्मचारियों के योगदान के नियम क्या हैं?
जिस कंपनी में कुल कर्मचारियों की संख्या 20 से अधिक है और उस कंपनी के जिन कर्मचारियों का वेतन 15,000 रुपये से कम है, ऐसे कर्मचारियों को अपने मूल वेतन का 12% डीए के साथ ईपीएफ में योगदान करना होता है।
वैसा कंपनी जहां कुल कर्मचारी 20 से कम है और उस कंपनी का कर्मचारी जिनके वेतन 15000 से कम है वैसे कर्मचारियों को इपीएफ में उनका योगदान उनकी बेसिक वेतन और साथ में DA को मिलाकर 10% तक देना पड़ सकता है।
जिस कंपनी में कुल कर्मचारियों की संख्या 20 से कम है और कर्मचारियों का वेतन 15000 से कम है, तो कंपनी को कर्मचारी के EPF खाते में 12% का योगदान करना होता है। इसका मतलब है कि कंपनी को EPF में उतना ही योगदान करना होगा जितना कर्मचारियों को देना है।
अब हम बात करेंगे वैसे कर्मचारियों के बारे में जिनके मासिक वेतन 15000 से ज्यादा है।
हम पहले ही उन कर्मचारियों के बारे में बात कर चुके हैं जिनका मासिक वेतन 15000 से अधिक है कि वे EPF करा सकते हैं लेकिन उन्हें अपनी कंपनी से पूछना होगा क्योंकि वे स्वैच्छिक आधार पर EPF में योगदान कर सकते हैं। लेकिन अगर ऐसा होता है कि कर्मचारी पहले से ही PF में पंजीकृत है, तो ऐसे कर्मचारी को ईपीएफ में अनिवार्य पंजीकरण करवाना होगा।
EPF में कितना योगदान कर्मचारी और कितना कंपनी को करना पड़ेगा?
ऐसी स्थिति में कर्मचारियों को अपने वेतन का 12% डीए के साथ देना होता है और कंपनी को भी उतना ही योगदान देना होता है जितना कर्मचारी दे रहे हैं, लेकिन अगर कर्मचारी और कंपनी दोनों इससे ज्यादा योगदान देना चाहें तो कर सकते हैं लेकिन यह कर्मचारियों के वेतन पर आधारित होगा। लेकिन देखा गया है कि ज्यादातर कंपनियों ने एक बेसिक योगदान तय कर रखा है जो कर्मचारी के वेतन का 12% या न्यूनतम वेतन 15,000 रुपये का 12% होता है जो लगभग 1800 रुपये होता है, लगभग सभी कंपनियों में ईपीएफ के लिए ऐसा ही किया और करवाया जाता है।
कर्मचारी और कंपनी EPF के लिए योगदान देते हैं वह जाता कहां है?
कर्मचारी ईपीएफ में जो भी योगदान करते हैं, वो पूरा ईपीएफ में जाता है लेकिन कंपनी द्वारा ईपीएफ में किया गया योगदान दो हिस्सों में बंटा होता है। तो कंपनी द्वारा ईपीएफ में जो भी योगदान किया जाता है, उसका 50% ईपीएफ में जाता है और 50% EPS (कर्मचारी पेंशन योजना) में जाता है। कंपनी द्वारा ईपीएफ में किए गए 12% योगदान में से 3.67 प्रतिशत ईपीएफ में जाता है और 8.33% EPS में जाता है।
EPF और EPS में एक बड़ा अंतर है जो हम सभी के लिए जानना जरूरी है और वह अंतर यह है कि ईपीएफ में जो पैसा जमा होता है वह रिटायरमेंट के लिए जमा होता है और ईपीएफ के पैसे पर हमें ब्याज भी मिलता है, लेकिन ईपीएस में जो पैसा जाता है वह पेंशन के लिए जाता है और इसमें मौजूद पैसे पर हमें कोई ब्याज नहीं मिलता है।
यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि ईपीएस में जाने वाले पैसे की एक सीमा है, यानी आप हर महीने ईपीएस में अधिकतम 1250 रुपये जमा कर सकते हैं। और बचा हुआ पैसा जो EPF से EPS में आता है लेकिन अगर 1250 रूपये से ज्यादा EPS में आता है तो ऐसी स्थिति में जो पैसा 1250 रूपये से ज्यादा है वो ईपीएफ में वापस चला जायेगा।
आईपीएस के द्वारा पेंशन मिलती है वह कितनी मिलती है?
रिटायरमेंट के समय से लेकर रिटायरमेंट के समय तक किसी व्यक्ति को कितनी पेंशन मिलेगी यह जानने के लिए हम एक फॉर्मूले का इस्तेमाल करेंगे इस फॉर्मूले में 60 साल की औसत सैलरी ली जाती है इसके बाद अपनी नौकरी की अवधि को औसत सैलरी से गुणा कर दें इसके बाद आपको इसे 70 से भाग देना है इसके बाद जो संख्या मिलेगी उतनी पेंशन दी जाएगी। इसमें आपको न्यूनतम ₹1000 और अधिकतम ₹7000 प्रति माह की दर से पेंशन दी जाएगी।
अब तक हमने EPF (कर्मचारी भविष्य निधि) के दो भागों के बारे में जाना है जो EPF और EPS (कर्मचारी पेंशन योजना) थे। इसके अलावा, इसमें दो और भाग हैं, जिनके बारे में हम आगे जानेंगे।
जो निम्नलिखित है 1. ELDI(Employee Deposit linked Insurance) का पूरा नाम है।
इसमें 0.5 का चार्ज लिया जाता है जो बेसिक और DA को मिलाकर लिया जाता है और इसका भुगतान प्रीमियम की तरह किया जाता है और इससे हमें एक कर्मचारी के तौर पर बीमा मिलता है और हमें मिलने वाला बीमा की अधिकतम राशि 7 लाख है। और ईपीएफ के चौथे हिस्से के लिए हमें 0.5 प्रतिशत का भुगतान करना पड़ता है और वह प्रशासनिक शुल्क है।
यह शुल्क 0.5 ELDI और 0.5 प्रशासन शुल्क है, ये दोनों शुल्क कर्मचारी से लिए जाते हैं।
EPF पर टैक्स कितना लगता है और अब कब लगता है?
पहले EPF EEE की श्रेणी में आता था जिसका मतलब है ईपीएफ के लिए निवेश किया गया पैसा। निवेश किए गए पैसे पर कोई टैक्स नहीं लगता था और निवेश करने के बाद निवेश किए गए पैसे पर मिलने वाले ब्याज पर भी टैक्स नहीं लगता था। इसके बाद जब EPF मैच्योर होता है और मैच्योरिटी के बाद जब ईपीएफ से पैसा निकाला जाता है तो निकाले गए पैसे पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था।
लेकिन 2020 और 2022 में ईपीएफ के लिए कुछ नियमों में बदलाव किया गया है। लेकिन अब इसके लिए कुछ सीमाएं लगा दी गई हैं, यानी ऐप अभी भी EEE की श्रेणी में आता है लेकिन इसका इस्तेमाल कुछ सीमाओं के साथ किया जा सकता है।
सबसे पहले हम बात करेंगे इन्वेस्टमेंट की तो इसमें हम दो तरह से इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं पहले तो इन्वेस्टमेंट हो रहा है वह कर्मचारी की तरफ से हो रहा है और दूसरा जो इन्वेस्टमेंट हो रहा है उसे कंपनी द्वारा हो रहा है।
तो कर्मचारी द्वारा जो भी निवेश किया जाता है, आप Section 80C के तहत 1.5 लाख तक का निवेश कर सकते हैं इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है इसकी लिमिट पहले भी वही थी और आज भी वही है लेकिन कंपनी द्वारा किए जाने वाले निवेश में बदलाव किए गए हैं पहले कंपनी द्वारा किए जाने वाले निवेश में कोई लिमिट नहीं थी लेकिन अब उसे सीमित कर दिया गया है और वह लिमिट अधिकतम 7.5 लाख प्रतिवर्ष कर दी गई है और अप्रैल 2020 से इसे लागू कर दिया गया है और क्या, EPF और NPS दोनों को मिलाकर लिमिट 7.5 लाख रखी गई है।
EPF में कर्मचारी और कंपनी द्वारा निवेशित पैसों पर कितना टैक्स लगता है?
कंपनी द्वारा निवेश किए गए धन पर कोई कर नहीं लगता है तथा कंपनी द्वारा किए जाने वाले निवेश की कोई सीमा नहीं है, लेकिन कर्मचारी प्रति वर्ष अधिकतम 2.5 लाख रुपये तक ही निवेश कर सकते हैं तथा इससे अधिक राशि जमा करने पर कर स्लैब के अनुसार कर लगेगा।
EPF में निवेशित पैसों की मैच्योरिटी होने पर कितना टैक्स लगेगा?
तो आपको बता दें कि जब ईपीएफ में निवेश किया गया पैसा मैच्योर हो जाता है और हम उस पैसे को निकालते हैं तो उस पैसे पर कोई टैक्स नहीं लगता है लेकिन उसके लिए एक शर्त है कि आपकी नौकरी लगातार 5 साल तक होनी चाहिए।
EPF का पैसा हम कैसे निकल सकते है, कब निकाल सकते हैं,और कितना निकल सकते हैं?
आप सभी को पता होना चाहिए कि ईपीएफ का पैसा एक आवश्यकता निधि है, इसलिए सरकार आपको इस पैसे को आसानी से निकालने की अनुमति नहीं देती है। लेकिन हम इस पैसे को निकाल सकते हैं लेकिन इसके लिए हमें EPF निकासी के लिए बनाई गई शर्तों का पालन करना होगा। तो चलिए जानते हैं कि किन परिस्थितियों में हम पैसे निकाल सकते हैं। हम पूरा पैसा केवल दो परिस्थितियों में ही निकाल सकते हैं।
- पहली शर्त यह है कि हम ईपीएफ की पूरी रकम तभी निकाल सकते हैं जब हम रिटायर होते हैं, क्योंकि जब हम रिटायर होते हैं, उस समय यह मैच्योर हो जाता है और रिटायरमेंट के बाद आप आसानी से सारा पैसा निकाल सकते हैं।
- दूसरी शर्त यह है कि जब आप किसी कारणवश अपनी नौकरी छोड़ देते हैं या कंपनी आपको किसी कारणवश नौकरी से निकाल देती है और आप कम से कम 2 महीने तक बिना नौकरी के रह रहे होते हैं, तब आप यह पैसा निकाल सकते हैं।
- यदि आप एक महीने से अधिक समय तक बिना नौकरी के रह रहे हैं तो आप अपने EPF में जमा धन का 75% निकाल सकते हैं।
- अगर आपके रिटायरमेंट में सिर्फ एक साल बचा है और आप सिर्फ इसी वजह से पैसा निकालना चाहते हैं तो आप 90% पैसा निकाल सकते हैं।
पार्शियल निकासी:
कुछ विशेष मामलों में हम आंशिक निकासी का उपयोग कर सकते हैं जो नीचे दी गई है।
यदि आपको अपना मकान बनवाना है या उसकी मरम्मत करानी है तो आप उसमें से कुछ पैसे निकाल सकते हैं।
यदि आपने किसी से लोन लिया है और उस लोन को चुकाने के लिए आप व्यक्तिगत निकासी के रूप में उसमें से पैसा निकाल सकते हैं।
अगर आपके परिवार के किसी सदस्य को कोई बीमारी हो जाए तो भी आप पार्शियल निकासी कर सकते हैं।
अगर आपके बच्चे के पढ़ाई के लिए या फिर आपके बच्चे की शादी के लिए पैसे की जरूरत पड़े तो भी इसे आप पार्सली पैसे निकाल सकते हैं।
EPF (Employees Provident Fund) Overview
Salary Structure and EPF Contributions
Aspect | Details |
Salary Basis | Most companies use CTC (Cost to Company). |
Deductions | Health insurance, food provisions, EPF |
EPF Contributions | Up to 24% of salary, typically Rs 1800 each from employee and company. |
Understanding EPF
Aspect | Details |
What is EPF? | Retirement savings, health insurance, investments. |
EPF Components | EPFO card, UAN (Universal Account Number). |
Mandatory for Companies | Companies with >20 employees must open EPF accounts. |
Mandatory for Employees | Salary < Rs 15,000: EPF account required. Salary > Rs 15,000: Voluntary registration |
Contributions and Distribution
Aspect | Details |
Employee Contribution | 12% of basic salary + DA |
Company Contribution | >20 employees: 12%. <20 employees: 10%. |
Distribution | Company contribution: 50% to EPF, 50% to EPS. |
EPS Contribution Limit | Maximum Rs 1250/month. Excess goes to EPF. |
Tax Implications and Withdrawals
Aspect | Details |
Employee Tax Benefits | Investment up to Rs 1.5 lakh under Section 80C is tax-free. |
Company Tax Benefits | Investment up to Rs 7.5 lakh annually, covering EPF and NPS |
Tax on Maturity | Withdrawals after 5 years of continuous employment are tax-free. |
Withdrawal Conditions | Retirement, job loss (2 months), special circumstances (illness, education). |
Additional Components of EPF
Component | Details |
ELDI (Employee Deposit Linked Insurance) | 0.5% charge on basic salary + DA, up to Rs |
Administrative Fee | Additional 0.5% charged. |
Conditions for EPF Withdrawal
Condition | Details |
Complete Withdrawal | Retirement, unemployment (2 months) |
90%Withdrawal | one year before retirement. |
75% Withdrawal | unemployment after 1 month |
Partial Withdrawal | House construction/repair, loan repayment, family illness, child’s education/marriage. |