Repo Rate यानी वह दर जिस पर केंद्रीय बैंक (RBI) द्वारा बैंकों को कर्ज दिया जाता है। रेपो रेट में बदलाव महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जब भी देश में महंगाई बढ़ जाती है तो बैंक रेपो रेट में वृद्धि कर लेता है। जब देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब होती है तब रेपो रेट कम कर दी जाती है।
Repo Rate का पूरा नाम Repurchase Agreement or Repurchasing Option है।
How Does Repo Rate Works (रेपो रेट कैसे काम करता है)?
पहले ही कहा गया था, रेपो दर का उपयोग भारतीय केंद्रीय बैंक द्वारा बाजार में धन की बहाव को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। जब बाजार में महंगाई बढ़ता है, तो रेपो दर को भी RBI बढ़ा देता है।
रेपो रेट बढ़ने का मतलब है कि इस समय केंद्रीय बैंक से पैसा उधार लेने वाले बैंकों को अधिक ब्याज देना होगा। इससे बैंकों को पैसा उधार लेने में कठिनाई होती है, और बाजार में पैसे की मात्रा कम होती है जो महंगाई को कम करने में मदद करता है। मंदी की स्थिति में, आरबीआई रेपो रेट भी कम कर देता है।
भारत में वर्तमान रेपो दर:-
अप्रैल 2024 के बैठक के अनुसार RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने प्रमुख Repo Rate को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने की घोषणा की।
2010 से 2024 तक ऐतिहासिक रेपो दरें
भारत में ऐतिहासिक रेपो दरों की सूची निम्नलिखित है-
Period – Date Effective from | Repo Rates |
---|---|
8th February 2024 | 6.50% |
8th December 2023 | 6.50% |
8th June 2023 | 6.50% |
8th February 2023 | 6.50% |
7th December 2022 | 6.25% |
30th September 2022 | 5.90% |
5th August 2022 | 5.40% |
8th June 2022 | 4.90% |
May 2022 | 4.40% |
9th October 2020 | 4.00% |
6th August 2020 | 4.00% |
22nd May 2020 | 4.00% |
27th March 2020 | 4.00% |
6th February 2020 | 5.00% |
7th August 2019 | 5.00% |
6th June 2019 | 6.00% |
4th April 2019 | 6.00% |
7th February 2019 | 6.00% |
1st August 2018 | 7.00% |
6th June 2018 | 6.00% |
2nd August 2017 | 6.00% |
4th October 2016 | 6.00% |
5th April 2016 | 7.00% |
29th September 2015 | 7.00% |
2nd June 2015 | 7.00% |
4th March 2015 | 8.00% |
15th January 2015 | 8.00% |
28th January 2014 | 8.00% |
29th October 2013 | 7.75% |
20th September 2013 | 7.50% |
3rd May 2013 | 7.25% |
17th March 2011 | 6.75% |
25th January 2011 | 6.50% |
2nd November 2010 | 6.25% |
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How repo rate is decided ( रेपो रेट कैसे तय होता है)?
Repo Rate भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा अपनी मोनेटरी पॉलिसी का एक हिस्सा होती है। इसे आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) द्वारा आयोजित आवधिक बैठकों के दौरान निर्धारित किया जाता है, जो आमतौर पर हर दो महीने में होती है।
एमपीसी Repo Rate के संबंध में निर्णय लेने के लिए विभिन्न आर्थिक संकेतकों का आकलन किया जाता है, जैसे मुद्रास्फीति, आर्थिक विकास, रोजगार स्तर और अन्य व्यापक आर्थिक कारक। रेपो दर को समायोजित करने का प्राथमिक उद्देश्य मूल्य स्थिरता बनाए रखना और आर्थिक विकास का समर्थन करना होता है।
यदि एमपीसी को लगता है कि मंहगाई दर लक्ष्य से ऊपर बढ़ रही है, तो वह रेपो दर बढ़ाने का फैसला कर सकती है। इससे बैंकों के लिए पैसा उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है, जिससे अर्थव्यवस्था में धन प्रवाह की मात्रा कम हो जाती है। परिणामस्वरूप, मंहगाई दर का दबाव कम हो सकता है।
उम्मीद है कि यह जानकारी आपको समझ में आई होगी।
How to decrease repo rate(रेपो रेट कैसे कम करें)?
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रेपो दर को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठा सकता है:
1. मौद्रिक नीति समिति का निर्णय: आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) रेपो दर को निर्धारित करती है। एमपीसी समय-समय पर बैठक करके रेपो दर को कम करने का निर्णय लेती है।
2. आर्थिक आकलन: आरबीआई विभिन्न आर्थिक संकेतकों का विश्लेषण करती है ताकि यह निर्धारित कर सके कि रेपो दर में कटौती की आवश्यकता है या नहीं।
3. संचार: आरबीआई रेपो दर में कमी के निर्णय के बाद जनता, वित्तीय संस्थानों और बाजारों को सूचित करती है।
4. कार्यान्वयन: आरबीआई एक बार निर्णय को लागू करती है, और वाणिज्यिक बैंक निर्धारित निचली दर पर आरबीआई से धन उधार लेते हैं।
संक्षेप में, रेपो दर को कम करने के लिए, आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति को बुलाने, आर्थिक आकलन करने, दर कम करने का निर्णय लेने, निर्णय को संप्रेषित करने और उधार लेने की लागत को प्रभावित करने और आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने के लिए नई रेपो दर को लागू करने की आवश्यकता है।